चलो अब आपको आगे के सफर का बाकया सुनाते हैं। जैसे तैसे भिण्ड़ तो पहुच गये लेकिन इन लड़को ने तो यहाँ की सड़को पर भी हमारा पीछा नहीं छोड़ा। अब घर पहुँचने के लिए टेम्पों से, स्टेशन से मार्केट का रास्ता तो तय करना ही था सो हमारे टेम्पों ने भी कच्ची सडक का रास्ता पारकर मुख्य सड़क की ओर अपने रूख कर लिया। अरे ये क्या मैं तो सोच रही थी कि करीब 60-70 लड़के ही रहें होगें लेकिन यहाँ तो लडकों का हूजूम देखकर मेरी आखें ही चोंधिया गई। इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सड़क पर लड.को का सैलाब उमड़ पड़ा हो। अब भिण्ड की टूटी फूटी ओर सकरी सड़के उस पर लड़को का रास्ता घेरकर चलने ने टेम्पूओं के लिए दस कदम की दूरी तय करना भी पहाड़ पार करने जितना मुश्किल बना दिया था। सभी लड़के पैदल थे ऊपर से रास्ते की रूकाबटो ने टेम्पूओं की चाल को तो धीमा कर ही दिया था सो सभी लड़के टेम्पूओं पर लटक लटक कर अपना रास्ता तय कर रहे थे। अब प्रत्येक टेम्पों पर 8-10 लड़को का लटक जाना सवारियों की परेसानी के साथ-साथ टेम्पों चालकों की चिन्ता का कारण भी बन गया था। कहीं टेम्पों पलट न जाए वे इसी डर से टेम्पों रोकते और ड़ाॅट-डपट कर लडकों को नीचेे उतारते पर लड़के कहाँ मानने वालों मे से थे। हाँ हमारे टेम्पो चालक को जरूर एक तरकीब सूझी ओर उसने गलियों से ले जाकर आखिर मार्केट तक हमें पहुचा ही दिया। करीब 500-600 लड़के रहे होगे सभी ने राहगीरों केा बुरी तरह परेसान कर रखा था । कोई अनुशासन नहीं कोई पुलिश व्यवस्था नहीं। गृहनगर है सो सुधार की चिन्ता तो होगी ही अब यही सोच रही थी कि जाने कब इसके दिन बदलेगें इस शहर का सुधार होगा भी या नही। तभी एक ओर अव्यवस्था नजर आई यहाँ का मुख्य चैराहा इतना सकरा होता जा रहा कि लोगों कि परेसानी का सबब बना हुआ है। यहाँ रोड़ चैड़ीकरण के कारण आधी रोड़ बनाकर छोड़ दी गई है। जिससे एक्सीडेन्ट की संभावना भी बड़ गई है। वही मार्केट में डिवायडर (जिसका निर्माण करीब 5-6 वर्ष पहले किया गया था) ने राहगीरों के लिए रास्ता सुबिधा की जगह दुबिधा जनक बना दिया है। वैसे सड़को को सकरा करने में डिवायडरों ने भी अच्छी भूमिका निभाई है। पहले जहाँ सड़क के दो ओर ही ठेले लगते थे वही अब ये बढ़कर चारों ओर लगने लगें है। दाई ओर की सड़क के दोनेां ओर बाई ओर की सड़क के दोनो ओर। यहाँ का नगर निगम प्रशासन अभी शायद इस समस्या से अन्जान है। नहीं तो जनता की परेसानी उन्हे थोड़ा बहुत परेसान तो करती ही।
भाषा के प्रति अंबेडकर का राष्ट्रीय दृष्टिकोण
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बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनकी पत्रकारिता
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए भाषा का प्रश्न भी राष्ट्रीय महत्व का
था। उनकी मातृभाषा मराठी थी। अपनी...
2 हफ़्ते पहले
लड़कों की धो डाली... इस तरह का आचरण करने वाले लड़के इसी लायक है....
जवाब देंहटाएंbahut achchha virtant
जवाब देंहटाएंनिहारिका !
जवाब देंहटाएंहिन्दीभाषी और कायस्थ... फिर भाषा में इतने दोष क्यों?
श', 'स' और 'ष' में से किसे कहाँ उपयोग करना है? इस पर ध्यान दो. पत्रकारिता में तो भाषा का बहुत महत्व है. अभी से भाषा सही होगी तो आगे सफलता की संभावना अधिक होगी.