मन में उडेलने को बहुत से विचार है पर न जाने क्यों अब मन शब्दों में पिरोने से डरने लगा है। कही कुछ ग़लत तो नही लिख रही। वही अगले ही पल सोचती हू अगर ऐसे ही डरती रही फ़िर लिखना कैसे सीखूंगी। इतने दिन कुछ भी न लिख पाने के कारण सभी ब्लॉग दर्शकों से छमा चाहूंगी।
जाने क्यों मन बीते हुए पलों को बार बार याद करता है।
न जाने क्यों मन उस वक्त का लम्हा लम्हा पलटता है।
केाटा षहर से बहुत से अनुभव लेकर जीवन का एक और पड़ाव पार कर लिया। कभी लगता दोस्तों के साथ बिताए वो पल फिर लौट आए। उन पलों में जो आन्नद और सुकून था वो अब कहा। जीवन की भागदौड़ षुरू हो गई है। फिर उन सपनों केा भी तो पूरा करना है जिन्हें छोटे से षहर से आई सीधी-साधी लड़की ने देखे थे। पर फिर डर लगता है कहीं सपनों को साकार न कर सकी तो..................
पर इस डर से अपनी उडान को थमने नहीं दूंगी।
जब पत्रकारिता ने चलाया गो-संरक्षण का सफल आंदोलन
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4 दिन पहले
oye dont worry DOST .....u r a journalist....you can do anything...remembar anything !!
जवाब देंहटाएंanyways achha laga aap prayas kar rahe ho .... becoz koshish karne walon ki kabhi har nahi hoti... waise aapki study kaisi chal rahi hai.. ???
aapki sari tamanna puri ho....
जवाब देंहटाएंnever be a prisoner of your past. become the architect of your future.
जवाब देंहटाएं" niharika ...bahut hi sochti hai aap ...itana bhi mat socho ki aapka bhutkal aapka picha na chode ...aap buss kaam per man lagaiye ...safalta to mil jayegi ..."
जवाब देंहटाएं" subhkamna "
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