अनायास ही मन छोटे शहरों की अव्यवस्थाओं को देखकर अक्सर व्यथित हो जाता है।फिर बात अपने गृहनगर की हो तो टीस तो उठती ही है। जब भी अपने गृहनगर भिण्ड़ जाती तो कुछ न कुछ ऐसा देखती हूँ जो मन को दुखी कर देता है। चलो आज आपको अपने ग्वालियर शहर से भिण्ड़ की यात्रा का वर्णन सुनाती हूँ।
धटना थोड़ी पुरानी है लेकिन सफर की अव्यवस्थाये अपना चोला कभी नहीं बदलती। बात जनवरी माह के अन्तिम सप्ताह की है। जब में किसी की शादी मैं सरीक होने अपने गृहनगर जा रही थी बड़े उत्साहित मन से हम टिकिट खरीद ट्रेन मै जाकर बैठ गये टिकिट खिड़की पर ज्यादा भीड़ भी नही थी इसलिए कोई परेशानी भी नही हुई। मन मैं अलग अलग ख्यालों को लेकर मैं अपने घर और हमारी ट्रेन अपने अगले स्टेशन की ओर चल दी। अरे ये क्या कुछ पल बितते ही ग्वालियर का अगला स्टेशन बिड़ला नगर आ गया। स्टेशन पर होते शोर ने बिचारो की तन्द्रा को तोड़ दिया। अब चलाए मान मन कंहा एक जगह टिक सकता है तो अपनी जिज्ञासा को शान्त करने खिड़की के बाहर तो देखना ही था। बाहर जमा भीड़ को देखकर लगा जैसे कोई दुर्घटना हुई है पर मै गलत थी। अगले ही पल क्या देखती हूँ कि भीड़ छटकर अलग अलग डिब्बों में चढ़ गई है। हमारा डिब्बा जो पहले से हीे करीब करीब पूरा भरा हुआ था उसमें भी करीब तीस चालीस लड़के घुस आये अब नीचे तो बैठने को जगह थी नहीं सो वे सभी उपर वाली एक एक बर्थ पर चार चार पाँच पाँच लड़के बैठ गये। और देखते ही देखते डिब्बे मैं शोर शराबा होने लगा लोगों के मुख से निकलने निकलने बाले शब्द मेरे कानो तक पहुचने से पहले ही आपस मै टकराकर उन उलझे हुए धागों कि तरह हो गये थे जिनमे से किसी एक को सीधा समझ पाना मुशकिल होता है। थोडी कोशिश के बाद उनकी बातों से समझ आया कि वे सभी फौज में भर्ती के लिए आये थे उनमे से कोई भी सभ्य और शिक्षित प्रतीत नहीं हो रहे थे। उन सभी के जोशभरे अंदाज को देखकर जरूर लग रह था कि युवा खून में बाकई गर्मी होती है। सभी लड़को ने हमारा साथ भिण्ड तक दिया। हाँ एक खाॅस बात ओर बताती हूँ भिण्ड ग्वालियर के बीच चलने वाली कोटा पैसेन्जर का कोई भी सवारी कभी भी अपनी सुबिधा के अनुसार चेन खीचकर रोकने की खुली छूठ रखता है। क्योंकि यहाँ तो जुर्माना लगने से रहा। मै जितनी बार भी भिण्ड़ आती ये समस्या तो अक्सर पाती ही हूँ। सो इस बार भी कहां इस समस्या से अछूती रहती स्टेशन के नजदीेक आते ही कुछ लड़को चैन खीचं ही दी और सभी लड़के रोड से भाग निकले। ट्रेन अभी चल भी नहीं पाई थी कि फिर से किसी ने चैन खींच दी। इस तरह इन बिना टिकिट यात्रियों ने ट्रेन मैं बैठे अन्य यात्रियों को जबरन 20 मिनिट इन्तजार करने पर मजबूर कर दिया।
जारी ................
भाषा के प्रति अंबेडकर का राष्ट्रीय दृष्टिकोण
-
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनकी पत्रकारिता
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए भाषा का प्रश्न भी राष्ट्रीय महत्व का
था। उनकी मातृभाषा मराठी थी। अपनी...
4 दिन पहले
आपका कहना सही है.....अक्सर ऐसा होता है..ट्रेन में और कई रास्तों पर......
जवाब देंहटाएंइस तरह के असभ्य, दिशा हीन लड़के लोगों का सफ़र हराम करते हैं....
रेलवे को विशेष सुरक्षा का सध्यां रखना चाहिए इन रूट्स पर
Nice and superb post keep writting....waise such ko aapne dodari talwar par parkha hai...
जवाब देंहटाएंJai Ho mangalmay HO
आपने यह नहीं बताया आप रिजर्वेशन में थीं या जनरल डिब्बे में। रिजर्वेशन में थीं तो आपका कहना एक हद तक सही है पर जनरल बोगी के सफर में यह बातें सटीक नहीं बैठती हैं। जब जगह नहीं होगी तो लोग कहां बैठेंगे। और जो लोग पहले से ही बेरोजगार है वह टिकट कहां से खरीदेंगे। सरकार को ऐसे छात्रों को बिना टिकट यात्रा की अनुमति देनी चाहिए। रही बात इनकी बातचीत की शैली की तो महोदया यह भारत है विविधताओं का देश। अगर सभी सभ्य और सुरीली भाषा सीख गए तो बोलचाल की भाषा के छिपे रंग खत्म हो जाएंगे। लालू की गंवार बिहारी सबको न लुभाती। पंजाब के जाटों व पंजाबियों की बोलचाल की भाषा टीवी पर अपना वर्चस्व न बनाती। जो लोग जहां के हैं वैसे ही बोलेंगे। उसमें रस ढूंढ़िये आपको अच्छी लगने लगेगी।
जवाब देंहटाएंor aapne lekh ka title kya soch kar diya samjh nhi aaaya..
जवाब देंहटाएंराहुल बहुत हद ठीक कह रहे हैं। बस एक बात गलत है। पैसेंजर ट्रेन में कोई आरक्षित बोगी नहीं होती इसलिए निहारिका ने नहीं बताया। हाहाहाहा। फट्टियों वाली सीट पर कुछ ऐसे फटीचर आकर बैठते हैं जो न खुद बैठना चाहते हैं और न ही बैठने देते हैं। चेन उन्हें ऐसी लगती है जैसे माशूका का हाथ बस हाथ बढ़ाया पकड़ा और खींच लिया अपनी तरफ। अब चिल्लाए कोई। रेलवे को किरायेदार या मालिकान। क्या फर्क पड़ता है।
जवाब देंहटाएं.Nice post....
जवाब देंहटाएंराहुल सर यहाँ में आपकी आधी बात से सहमत हूँ कि जो लोग पहले से बेरोजगार है। वे टिकिट कहाँ से खरीदेगें। सरकार को ऐसे छात्रों को बिना टिकिट यात्रा कि अनुमति देनी चाहिए। शायद आपने मेरी पोस्ट सही से पड़ी नहीं है। इसमें कहीं भी बोलचाल की शैली को लेकर टिप्पणी नहीं की कई है। मैं बस इतना बताना चाहती हूँ कि हमारे यहाँ शिक्षा का स्तर कितना गिरा हुआ है। कि यहाँ युवा जोड़ तोड़ से हाईस्कूल पासकर बस फौज में भर्ती होना चाहता है। और जैसा कि आप तो जानते ही होगे अक्सर लडके किस प्रकार लडकियों के साथ असभ्यता का व्यवहार करते है। मेरा यह टाइटल ऐसी समस्याओं कि ओर घ्यान आकर्शित करने के लिए है। जिनकी ओर अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता।
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही... इसमें बेरोजगारी का रोना कही नहीं है.. यदि है तो फिर पीताम्बर पीठ के दर्शन के दर्शन के लिए शनिवार को जिस कदर दतिया रूट की ट्रेन में भीड़ होती है. उसे क्या कहेंगे.. और उस भीड़ में भी कई नव युवक बदतमीजी करते देखे जाते है.. साथी ही बेटिकट यात्रा करते है... लम्बे सफ़र पर निकले परिवारों को परेशां करते है.. और कई बातें है... जिन पर ध्यान देना जरुरी है.. .निहारिका जी आपने सही बातों की और ध्यान खींचा है...
जवाब देंहटाएंराहुल सर ने बिलकुल ठीक कहा, लेकिन शब्दों का माया जाल आपने बुना है वाकई अदभुत है, लिखते रहिये आप बहुत आगे जाने बलून में से हैं ..............
जवाब देंहटाएंदिल के भावों को आपने यहाँ उकेरा...पढ़कर बहुत अच्छा लगा ....अच्छी तरह बयां करती हैं आप जो भी होता है उसको
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
yahi falsafe baki rahe gaye hain ab zindagi ke.. nice blog..
जवाब देंहटाएंVery good...all the very best for a brilliant future...
जवाब देंहटाएंagli postkaa intezaar hai..